चीनी कंपनी शाओमी भारत में अपना नया फोन रेडमी 9 प्राइम 4 अगस्त को लॉन्च करेगी। कंपनी ने ट्वीट के जरिए जानकारी दी। इसे बजट फोन के तौर पर लॉन्च किया जाएगा। हालांकि कंपनी ने इसकी कीमत को लेकर कोई सफाई नहीं दी है लेकिन इतना जरूर बताया कि यह अपने प्राइस बैंड का पहला स्मार्टफोन होगा, जिसमें फुल एचडी प्लस डिस्प्ले मिलेगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसे 6-7 अगस्त को प्राइम डे की बिक्री के दौरान बेचा जाएगा।
कंपनी का ऑफिशियल ट्वीट
वीडियो स्ट्रीमिंग के जरिए होगी लॉन्चिंग
शाओमी रेडमी 9 प्राइम, जैसा कि पहले ही बता चुके हैं, 4 अगस्त को भारत में लॉन्च होने जा रहा है। लॉन्चिंग इवेंट दोपहर 12 बजे शुरू होगा और संभवतः यूट्यूब और कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट सहित सभी सोशल मीडिया अकाउंट्स पर स्ट्रीम किया जाएगा। देश में इसे अमेजन, एमआई डॉट कॉम, एमआई होम स्टोर्स और एमआई पार्टनर रिटेलर्स के माध्यम से बेचा जाएगा।
रेडमी 9 प्राइम की संभावित कीमत
रिपोर्ट्स की मुताबिक, रेडमी 9 प्राइम इस साल जून में अपनी शुरुआत में लॉन्च हो चुके रेडमी 9 के ग्लोबल वैरिएंट का ही रीब्रांडेड वर्जन है। हालांकि, रेडमी 9 प्राइम के एक स्पेसिफिकेशन जिसे कंपनी ने टीज किया है, जो पूरी तरह से रेडमी 9 के ग्लोबल वैरिएंट से मेल खाता है। शाओमी इंडिया के सीईओ मनु कुमार जैन ने 31 जुलाई को कहा कि रेडमी 9 प्राइम एक फुल-एचडी प्लस डिस्प्ले (2340x1080 पिक्सल रेजोल्यूशन, यानी इसमें करीब 2.5 मिलियन पिक्सल होंगे) के साथ आएगा, जो कि रेडमी 9 के ग्लोबल वैरिएंट में भी मौजूद है।
अगर रेडमी 9 प्राइम वास्तव में रेडमी 9 निकला, तो इसमें मीडियाटेक हीलियो G80 प्रोसेसर, 4GB तक रैम और 64GB तक ऑनबोर्ड स्टोरेज मिल सकता है। इसके अतिरिक्त, रेडमी 9 में 6.53-इंच का डिस्प्ले, 5020mAh बैटरी, यूएसबी टाइप-सी पोर्ट और डुअल नैनो सिम सपोर्ट भी मिल सकता है।
इसमें क्वाड कैमरा सेटअप है जिसमें 13-मेगापिक्सल का मेन शूटर, 8-मेगापिक्सल का सेकेंडरी अल्ट्रा-वाइड-एंगल शूटर, 5-मेगापिक्सल का मैक्रो कैमरा और 2-मेगापिक्सल का डेप्थ सेंसर समेत फ्रंट में 8-मेगापिक्सल का कैमरा मिलने की भी उम्मीद है।
इसके अलावा रेडमी 9 की तरह इसमें रियर फिंगरप्रिंट सेंसर, 3.5 मिमी ऑडियो जैक, IR ब्लास्टर और एक बड़ा 0.7CC स्पीकर बॉक्स भी मिलने की उम्मीद है।
कोरोना के कारण लोगों का रुझान पर्सनल मोबिलिटी की तरफ बढ़ गया है। मारुति सुजुकी इंडिया के मुताबिक, पहली बार कार खरीदाने वालों के साथ अतिरिक्त कार खरीदने वाले ग्राहकों का प्रतिशत कोविड-19 महामारी के बीच बढ़ गया है क्योंकि ग्राहक पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बजाए खुद का वाहन खरीदना पसंद कर रहे हैं।
कंपनी का यह भी मानना है कि जुलाई में वाहन की बिक्री में सुधार हुआ है, लेकिन त्योहारी सीजन के लिए दृष्टिकोण इस बात पर निर्भर करेगा कि स्वास्थ्य संकट कैसे खत्म हो रहा है, और लॉन्ग-टर्म व्हीकल की मांग भी अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धांतों पर बहुत कुछ निर्भर करेगी।
कार एक्चेंज कराने वाले ग्राहकों की कमी
कंपनी ने बताया कि, "फर्स्ट-टाइम कार खरीदने वालों का आंकड़ा बढ़ा है जबकि कार रिप्लेस करने वालों का आंकड़ा नीचे हुआ है। इसका मतलब है कि एक्सचेंज करने वाले ग्राहक कम हुए हैं। हालांकि, अतिरिक्त कार खरीदने वाले भी बढ़े है, क्योंकि उन्हें जरूरत के कारण खरीदरी करने पड़ रही है।"
इसके पीछे की वजह बताते हुए उन्होंने कहा, "मतलब है कि लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट की बजाए खुद के वाहन से सफर करना पसंद कर रहे हैं। साथ ही साथ उनकी आय का स्तर भी संभवत: कुछ समय के लिए कम हुआ है। इसलिए, ट्रेंड उस तरफ जा रहा है, जिसे हम 'टेलीस्कोपिंग ऑफ डिमांग डाउनवर्ड' कहते हैं। जो लॉजिकल और सहज है।
पिछले साल की चौथी तिमाही में फर्स्ट-टाइम बायर्स की हिस्सेदारी 5.5% थी
कंपनी ने इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 2019-20 की चौथी तिमाही की तुलना में 5.5 प्रतिशत से लगभग 51-53 प्रतिशत तक पहली बार खरीदारों की हिस्सेदारी देखी थी।
कोविड से पहले मिनी और कॉम्पैक्ट सेगमेंट में काफी इन्क्वायरी आई थी
मारुति सुजुकी इंडिया ने कोडिव से पहले इन्क्वायरी लेवल 85-90 प्रतिशत के स्तर तक पहुंचाया है, जिसमें सबसे ज्यादा मिनी और कॉम्पैक्ट सेगमेंट के लिए इन्क्वायरी की गई थी, जो पहले के 55 प्रतिशत के मुकाबले लगभग 65 प्रतिशत था।
जुलाई में मिनी सेगमेंट की 17,258 कारें बिकी, पिछले साल से 49.1% ज्यादा
जुलाई में, ऑल्टो और एस-प्रेसो सहित कंपनी के मिनी सेगमेंट की कारों की बिक्री पिछले साल के इसी महीने में 11,577 यूनिट्स के मुकाबले 49.1 प्रतिशत बढ़कर 17,258 यूनिट्स रही, लेकिन कॉम्पैक्ट सेगमेंट में वैगनआर, स्विफ्ट, सेलेरियो, इग्निस, बलेनो और डिजायर जैसे मॉडल शामिल थे। जिनकी बिक्री 51,529 यूनिट्स के साथ 10.4 फीसदी नीचे थी, जो साल भर पहले इसी महीने में 57,512 यूनिट्स थी। कुल डोमेस्टिक पैसेंजर वाहन की बिक्री जुलाई 2019 में 96,478 यूनिट थी, जो अब 1.3 प्रतिशत बढ़कर 97,768 यूनिट हो गई।
भारत में मोबाइल फोन 25 साल का हो गया है। 31 जुलाई 1995 को पहली बार मोबाइल फोन ने भारतीय बाजार में कम रखा। पहली बार इसी दिन पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने पहली मोबाइल कॉल कर तत्कालीन केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम से बात की थी। तब से लेकर अब तक भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टेलिकॉम मार्केट बन चुका है। वर्तमान में, भारत में लगभग 44.8 करोड़ मोबाइल फोन इंटरनेट यूजर्स है, और काफी हद तक इसका श्रेय मुकेश अंबानी को जाता है, जिन्होंने जियो के साथ देश में फ्री कॉलिंग और इंटरनेट कल्चर की शुरुआती की। पहले लग्जरी और स्टेट्स सिंबल के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाला स्मार्टफोन आज लोगों की जरूरत बन गया है। आइए जानते हैं 25 साल में कितना बदल गया है मोबाइल फोन...
1995: कॉरपोरेट्स को इंटरनेट के लिए 15000 रुपए तक देने होते थे
1995 में विदेश संचार निगम लिमिटेड ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर इंटरनेट कनेक्टिविटी का तोहफा भारत के लोगों को दिया। कंपनी ने देश में गेटवे इंटरनेट ऐक्सिस सर्विस के लॉन्च का ऐलान किया। शुरुआत में यह सेवा चारों मेट्रो शहरों में ही दी गई। लोग डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकम्युनिकेशन्स आई-नेट के जरिए लीज्ड लाइन्स या डायल-अप फैसिलिटीज़ के साथ इंटरनेट इस्तेमाल करते थे। उस समय 250 घंटों के लिए 5,000 रुपए देने होते थे जबकि कॉरपोरेट्स के लिए यह फीस 15,000 रुपए थी।
पहली कॉल राइटर्स बिल्डिंग से नई दिल्ली स्थित संचार भवन के बीच
ज्योति बसु ने यह कॉल कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग से नई दिल्ली स्थित संचार भवन में की थी। भारत की पहली मोबाइल ऑपरेटर कंपनी मोदी टेल्स्ट्रा थी और इसकी सर्विस को मोबाइल नेट (mobile net) के नाम से जाना जाता था। पहली मोबाइल कॉल इसी नेटवर्क पर की गई थी। मोदी टेल्स्ट्रा भारत के मोदी ग्रुप और ऑस्ट्रेलिया की टेलिकॉम कंपनी टेल्स्ट्रा का जॉइंट वेंचर था। यह कंपनी उन 8 कंपनियों में से एक थी जिसे देश में सेल्युलर सर्विस प्रोवाइड करने के लिए लाइसेंस मिला था।
कॉल करने वाले और सुनने वाले, दोनों को देने पड़ते थे पैसे
भारत में मोबाइल सेवा को ज्यादा लोगों तक पहुंचने में समय लगा और इसकी वजह थी महंगे कॉल रेट। शुरुआत में एक आउटगोइंग कॉल के लिए 16.80 रुपए प्रति मिनट और कॉल सुनने के लिए 8.40 रुपए प्रति मिनट देना होता था या एक कॉल पर कुल 24 से 25 रुपए प्रति मिनट का खर्च आता था।
नोकिया लाया था भारत में सबसे पहले कैमरा वाला फोन
वैसे तो सन् 2000 में कैमरा फोन में जापान और साउथ कोरिया में अपना डेब्यू कर लिया था। इस समय फोन में 0.11 से 0.35 मेगापिक्सल तक के कैमरा मिलते थे। हालांकि, इस समय न सोशल मीडिया था ना ही फोन में बड़ा डिस्प्ले मिलता था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत में नोकिया 7650 पहला कैमरा फोन था। कंपनी ने सबसे पहले इसका अनाउंसमेंट 2002 में किया था। इसमें 0.30 मेगापिक्सल का कैमरा था और यह जीपीआरएस, ब्लूटूथ और इंफ्रारेड से फोटो ट्रांसफर करता था।
एचटीसी में भारत में उतारा था 30 हजार रुपए का पहला एंड्रॉयड फोन
ताइवान की हैंडसेट बनाने वाली कंपनी एचटीसी ने भारत में सबसे पहला एंड्रॉयड स्मार्टफोन लॉन्च किया था। यह गूगल के ओपन सोर्स एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम पर काम करता था। उस समय इसकी कीमत 30 हजार रुपए थी।
1994 से 2001 तक
साल 1994 में सरकार ने सेलुलर और रेडियो सर्विस में प्राइवेट सेक्टर्स को एंट्री करने की अनुमति दी। स्पेक्ट्रम कि निलामी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में हुई। साल 1995 मे मोदी टेल्स्ट्रा ने कोलकाता में पहला मोबाइल नेटवर्क स्थापित किया। यही वक्त था जबकि पहली बार भारत में मोबाइल फोन की रिंग सुनाई दी। 31 जुलाई 1995 को पहली कॉल पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने पहली मोबाइल कॉल कर तत्कालीन केंद्रीय दूरसंचार मंत्री सुखराम की बीच हुई। यह भी कह सकते हैं कि बंगाल की राइटर्स बिल्डिंग से नई दिल्ली स्थित संचार भवन के बीच हुई। इसके ठीक दो साल बाद यानी साल 1997 में इंडिपेंडेंट रेगुलेटर के तौर पर ट्राई की स्थापना हुई, जिसकी काम टेलीकॉम कंपनियों का नियंत्रित रखना है। साल 1999 में ऑपरेटर्स ने लाइसेंस फीस की जगह सरकार के साथ रेवेन्यू शेयर करना शुरू किया। जिसकी फायदा यह हुआ कि कॉल रेट्स कम हुए। वहीं, 2001 में फिक्स्ड लाइन सर्विस प्रोवाइडर ने ग्राहकों को लिमिटेड मोबाइल नेटवर्क देना शुरू किया था।
2002 से 2006 तक
साल 2002 में धीरूभाई अंबानी की रिलायंस इंफोकॉम ने CDMA मोबाइव सर्विस शुरुआत की और कंपनी कंपनी हर व्यक्ति कर फोन पहुंचाने के लिए 500 रुपए का फोन लॉन्च किया। इसी साल में नेशनल कॉल पर रोमिंग लगना भी शुरू हुई। हालांकि 2003 तक आते-आते इनकमिंग कॉल्स फ्री हो गई। कंपनियों को एक लाइसेंस पर सेलुलर और लैंडलाइन सर्विस मुहैया कराने की छूट मिली। इसके बाद 2004 में मोबाइल फोन उपभोक्ताओं का आंकड़ा लैंडलाइन कनेक्शन से ज्यादा हो गया। इसके ठीक एक साल बाद यानी 2005 में टेलीकॉम में FDI को 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया गया और 2006 में ग्राहकों की सुविधा के लिए मोबाइल नबंर पोर्टेबिलिटी का प्रस्ताव लाया गया।
2008 से 2012 तक
इस दौरान मोबाइल फोन सेगमेंट में नई क्रांति आई। साल 2008 में MTNL ने दिल्ली और मुंबई में 3G नेटवर्क लॉन्च किया और इसी दौरान CDMA कंपनियों को GSM सर्विस मुहैया करने की छूट दी गई। हालांकि, टेलीकॉम सेक्टर पर साल 2009 में 2G स्कैम का दाग भी लगा। और इसी साल भारत में पहला एंड्ऱॉयड फोन लॉन्च हुआ जो आम आदमी की पहुंच से काफी दूर था क्योंकि इसकी कीमत लगभग 30 हजार रुपए था। लोगों की सहूलियत के लिए साल 2011 में राष्ट्रीय स्तर पर मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी शुरू हुई की गई, जिसमें ग्राहकों को एक ऑपरेटर से दूसरे में स्विच होने की सुविधा मिली। साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने 2G स्पेक्ट्रम स्कैम मामले में अपना फैसला सुनाते हुए 2007-09 के बीच जारी हुए लगभग 122 स्पेक्ट्रम लाइलेंस निरस्त कर दिए।
2013 से 2020 तक
2013 के आते-आते टेलीकॉम सेक्टर में 100 फीसदी FDI की अनुमति दे दी गई। इसी साल ऑपरेटर्स को एक लाइसेंस पर सभी तरह की टेलीकॉम सर्विस देने की छूट भी दी गई। साल 2014 में घरेलू कंपनी माइक्रोमैक्स भारत में सबसे बड़ा मोबाइल फोन सप्लायर बना चुका था। और इसकी ठीक दो साल बाद 2016 में 4G VoLTE नेटवर्क के साथ रिलायंस जियो ने मार्केट में एंट्री की, जिसके बाद सभी कंपनियों के बीच प्राइस वॉर शुरू हो गया। ग्राहकों को बनाए रखने के लिए सभी ने अपनी दरें कम कर दीं। 2017 में देशभर में लगने वाला रोमिंग चार्ज भी बंद कर दिया गया। और अब साल 2020 में रिलायंस में अपनी एजीएम मीट में घोषणा की कि उसने स्वदेशी विकसित 5G नेटवर्क तैयार कर लिया है, जिसे जल्द ही भारत में रोल आउट किया जाएगा।
1999 से 2019 तक 3000 गुना बढ़ गए मोबाइल फोन यूजर्स
भारत में मोबाइल फोन यूजर्स का आंकड़ा काफी धीमी गति से बढ़ा। हाई कॉल रेट्स और महंगे डिवाइस को इसकी मुख्य वजह कहा जा सकता है। लेकिन इस दौरान चीनी कंपनियों ने भारतीय बाजार में एंट्री की। साल 2011 में चीनी की सबसे बड़ी स्मार्टफोन कंपनी शाओमी ने भारतीय बाजार की तरफ अपना रुख किया और लोगों को किफायती कीमत में स्मार्टफोन दिए। इसके बाद क्या हुआ इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1999 में जहां सिर्फ 12 लाख सेलफोन यूजर्स थे जबकि 2019 तक आते-आते स्मार्टफोन यूजर्स की संख्या 116.17 करोड़ तक पहुंच गई।
सड़क दुर्घटनाओं में दोपहिया वाहन चालकों को अधिक सुरक्षा के प्रयासों के तहत सरकार ने हेलमेट को अनिवार्य मानकीकरण के दायरे में लाने की प्रक्रिया शुरू की है। प्रक्रिया पूरी होने के बाद देश में केवल भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) से प्रमाणित हेलमेट का विनिर्माण और बिक्री ही हो सकेगी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने शनिवार को एक बयान में कहा कि हेलमेट को बीआईएस सूची में शामिल होने से दो पहिया वाहन चालकों की सड़क दुर्घटना में जान बच सकेगी।
मंत्रालय ने लोगों से भी मांगे हैं सुझाव
मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि एक बार प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद देशभर में दोपहिया वाहन चालकों के लिए मात्र भारतीय मानक ब्यूरो से प्रमाणित हेलमेट का ही मेन्युफैक्चरिंग और बिक्री की जाएगी। बयान के मुताबिक मंत्रालय ने दोपहिया वाहन चालकों के लिए बनाए जाने वाले हेलमेट को भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम-2016 के तहत अनिवार्य प्रमाणन के मसौदा अधिसूचना तैयार की है। मंत्रालय ने इस पर लोगों से सुझाव आमंत्रित किए हैं।
नए मानक में हेलमेट का वजन घटाया
विशेषज्ञों का कहना है कि बगैर हेलमेट अथवा हेलमेट की खराब गुणवत्ता (लोकल हेलमेट) होने पर 1,000 रुपए का चालान होगा। नए मानक में हेलमेट का वजन डेढ़ किलो से घटाकर एक किलो 200 ग्राम कर दिया गया है। गैर बीआईएस हेलमेट उत्पादन, स्टॉक व बिक्री अब अपराध माना जाएगा। ऐसा करने पर कंपनी पर दो लाख का जुर्माना व सजा होगी। लोकल हेलमेट को अब निर्यात भी नहीं किया जा सकेगा।