Saturday, June 20, 2020

भारत में स्मार्टफोन का मार्केट साइज 2 लाख करोड़ रुपए का, 72% हिस्सा चीन की कंपनियों का; मार्केट से उनको हटा पाना होगा बेहद मुश्किल काम June 19, 2020 at 03:30PM

भारत और चीन के बीच लद्दाख के गलवान में चल रहे टकराव ने एक बार फिर भारत में चीनी कंपनियों के बिजनेस और दबदबे को लेकर चर्चा तेज कर दी है। चीन के लिए भारत एक बहुत बड़े बाजार के रूप में उभरा है। दोनों देशों में विशाल आबादी के कारण एक बहुत बड़ा कंज्यूमर बेस है। दरअसल चीन की कंपनियों के सस्ते उत्पाद भारत में अपनी जड़ें इस कदर जमा चुकीहैं कि उनको उखाड़ना बहुत मुश्किल है। यही नहीं, चीनी कंपनियां भारत में निवेश भी कर रही हैं।ऐसे में चीन के बाजार को भारत से खत्म करना एक मुश्किल काम है।

हालांकि भारत सरकार भारतीय बाजार को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने की सोच रही है। इसके बारे में चीन उम्मीद कर रहा होगा। चीनी कंपनियों को भारत सरकार से या प्राइवेट सेक्टर से फिलहाल कोई कॉन्ट्रैक्ट जल्द मिलने की संभावना नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हुवावेकंपनी, जिसका भारत के 5जी मार्केट में उतरने की पहले से ही कम अवसर थे, अब यह और भी कम हो गया है।

चीनी कंपनियों के बंद करने और बहिष्कार करने के सवाल परसीएनआई रिसर्च के सीएमडी,किशोर ओस्तवाल का कहना है कि भारत किसी भी देश का इंपोर्ट या अन्य बिजनेस को बंद नहीं कर सकता है। इसका कारण विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) है। डब्ल्यूटीओके नियमों के मुताबिक, किसी देश की सरकार आयात या बिजनेस को बंद नहीं कर सकती है। अगर ऐसा होता है तो फिर चीन भारत के व्यापार को रोकेगा। ऐसे मेंग्लोबलाइजेशन ही खत्म हो जाएगा। हमारे प्रधानमंत्री ने जो कहा, वह लोग समझ नही नहीं पाए। उन्होंने कहा था कि आत्मनिर्भर बनो। बहिष्कार की बात नहीं की है।

उनका कहना है कि आत्मनिर्भर का मतलब यह है कि आप अपने से किसी चीज का बहिष्कार कर सकते हैं। ग्राहक और कंपनी यह दोनों चाहें तो कर सकते हैंलेकिन सरकार नहीं कर सकती है। इसलिए यह कंपनियों और जनता को सोचना होगा कि वह किस तरह से चीन के सामानों की खरीदी बंद करे। जैसे बीएसएनल और रेलवे ने कदम उठाया है। उस तरह से अन्य कंपनियां चाहें तो यह कदम उठा सकती हैं। डब्ल्यूटीओ के चीन और भारत दोनों सदस्य हैं। इसके अलावा भारत के पास अभी खुद के प्रोडक्ट डेवलप करने की टेक्नोलॉजी भी कम है और आयात पर निर्भरता काफी ज्यादा है।

चीन की किन कंपनियों की भारत में किस सेक्टर में कितनी हिस्सेदारी है और अगर उनको हटा दिया जाए तो उनका क्या विकल्प होगा, इस पर इस तरह से देखते हैं।

स्मार्टफोन:स्मार्टफोन मार्केट साइज भारत में 2 लाख करोड़ रुपए का है। इसमें 72 प्रतिशत हिस्सा चीन की कंपनियों के प्रोडक्ट का है।
विकल्प: इस मामले में भारत के पास कोई विकल्प नहीं है। कारण कि चीन के ब्रांड हर प्राइस सेगमेंट में और आरएंडडी में काफी आगे हैं।

टेलीकॉम इक्विपमेंट:भारत में टेलीकॉम इक्विपमेंट का बाजार 12,000 करोड़ रुपए का है। इसमें चीन की कंपनियों की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत है।
विकल्प: भारत इसे कर सकता है। लेकिन यह महंगा पड़ेगा। टेलीकॉम कंपनियां 10-15 प्रतिशत प्रोक्यूरमेंट लागत में वृद्धि कर सकती हैं। लेकिन अगर ये कंपनियां अमेरिका या यूरोपियन सप्लायर्स का विकल्प अपनाती है तो उन्हें वेंडर फाइनेंसिंग ऑप्शन का नुकसान हो सकता है।

टेलीविजन:भारत में टेलीविजन का मार्केट 25,000 करोड़ रुपए का है। इसमें चीन की कंपनियों की स्मार्ट टीवी की हिस्सेदारी 42 से 45 प्रतिशत है। नॉन स्मार्ट टीवी की हिस्सेदारी 7-9 प्रतिशत है।
विकल्प: भारत कर सकता है। लेकिन यह काफी महंगा है। भारत की तुलना में चीन की स्मार्ट टीवी 20-45 प्रतिशत सस्ती है।

होम अप्लायंसेस:भारत में इस सेगमेंट का मार्केट साइज 50 हजार करोड़ रुपए है। इसमें चीन की कंपनियों की हिस्सेदारी 10-12 प्रतिशत है।
विकल्प: भारत के लिए काफी आसान है। लेकिन चीन के बड़े ब्रांड काफी सस्ते में भारत में प्रवेश करते हैं तो यह नजारा बदल सकता है।

ऑटो कंपोनेंट:भारत में इस सेगमेंट का मार्केट साइज 57 अरब डॉलर का है। इसमें चीन की कंपनियों की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत है।
विकल्प: भारत के लिए मुश्किल है। आरएंडी पर काफी खर्च करना होगा

सोलर पावर:भारत में इसका मार्केट साइज 37,916 मेगावाट का है। इसमें चीन की कंपनियों का हिस्सा 90 प्रतिशत है।
विकल्प: भारत के लिए यह एकदम मुश्किल है। घरेलू स्तर पर मैन्युफैक्चरिंग काफी कमजोर है। जबकि दूसरा विकल्प चीन की तुलना में महंगा होगा।

इंटरनेट ऐप:भारत में इंटरनेट एप का मार्केट साइज 45 करोड़ स्मार्टफोन यूजर के रूप में है। 66 प्रतिशत लोग कम से कम एक चीनी ऐप का इस्तेमाल करते हैं।
विकल्प: आसान है। लेकिन यह तभी होगा, जब भारतीय यूजर्स टिक-टॉक को बाय-बाय कर दें। अभी तक घरेलू ऐप इस मामले में फेल हैं।

स्टील:भारत में स्टील का मार्केट साइज 108.5 एमटी का है। इसमें चीन की कंपनियों की हिस्सेदारी 18-20 प्रतिशत है।
विकल्प: यह किया जा सकता है। पर इसमें कीमत चीन के ही जितना रखना होगा। लेकिन कुछ प्रोडक्ट पर यह संभव नहीं है।

फार्मा:एपीआई- भारत में फार्मा एपीआई का मार्केट साइज 2 अरब डॉलर का है। इसमें चीन की कंपनियों की हिस्सेदारी 60 प्रतिशत है।
विकल्प: बहुत मुश्किल है। अन्य सोर्स काफी महंगे होंगे। साथ ही रेगुलेटरी मुश्किलें भी हैं।

जाने माने इकोनॉमिस्टअरुण कुमार का कहना है कि चीन से भारतीय आयात कई तरह का है। पिछले कई सालों से ऐसे अभियान रह-रह के सुनाई पड़ते रहते हैं।इसकाअसर नहीं होता क्योंकिहमें जो प्रोडक्ट बाजार में 10 रुपए में मिल रहा है, वही चीन 5-6 रुपए में देता है। यह जनता के ऊपर है, चाहे तोसभी प्रोडक्ट का उपयोग बंद कर दे।आधिकारिक तौर पर इस तरह की कोई पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है।यह डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन होगा। बहिष्कार या बॉयकॉट का पूरा मामला इंडस्ट्री और जनता पर है।

उनका कहना है कि आप ज्यादा ड्यूटी भी नहीं लगा सकते हैं। इस पर भी डब्ल्यूटीओ केनियम हैं।साथ ही, आप अगर चीन से आयात बंद भी कर दें तो बाकी देशों से आयातकैसे करेंगे? चीन का लॉजिस्टिक कई देशों तक है और वहां से भी चीन की सामान भारत आता है।कई देशों से जो माल आता है उसमें भी चीन का हिस्सा होता है।

टेक्निकल क्षमता बढ़ाने और उद्योगों को डेवलप करने के लिए सरकार को अभी बहुत काम करने की जरूरत है।भारत मर्चेंट चेम्बर के ट्रस्टी राजीव सिंगल का कहना है किचीन से व्यापारिक प्रतिबंध तोड़ने और उनके सामानों को अपने देश में आयात करने को लेकर उपजा विरोध सही है, परंतु हमें इससे पहले व्यवहारिक अड़चन को दूर करना होगा। सरकार तो विश्व व्यापार संगठन से हुए समझौते के कारण ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकती। उसे कई स्पेशल इकोनामिक जोनतैयार करने होंगे ताकि हम पहले आत्मनिर्भर बनें।

ऐसे जोन में सस्ती जमीन उपलब्ध कराकर सरकार उद्यमियों को जीएसटी में डिस्काउंट दे, टैक्स हॉलिडे प्रदान करे लेबर कानून को सरल करे तो ऐसे में हम अपने आप आत्मनिर्भर हो जाएंगे और चीन के ऊपर हमारी निर्भरता एकदम समाप्त हो जाएगी।हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अभी भी कोरोना महामारी से निपटने के लिए कई महत्वपूर्ण उपकरण जैसे कि इंफ़्रा रेड थर्मामीटर, पल्स ऑक्सीमीटर आदि चीन से ही मंगाए जा रहे हैं।



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Chinese companies dominate most of the sector in India, 70-75% occupation in some sectors

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