गैजेट डेस्क. अमेरिका में कुछ चमत्कारिक निवेश हुए हैं। इनमें शामिल है- 1860 में रेलवे, 1940 में डेट्रॉयट कार इंडस्ट्री और इस सदी में तेल, गैस की खोज के लिए फ्रेकिंग इंडस्ट्री। आज स्टील, रेत, सीमेंट की बजाय स्क्रिप्ट, ध्वनि, स्क्रीन और सेलेब्रिटी से जुड़ी वीडियो स्ट्रीमिंग ने धूम मचा रखी है। इस सप्ताह डिज्नी ने अपनी स्ट्रीमिंग सेवा शुरू की है। इस कारोबार की अग्रणी कंपनी नेटफ्लिक्स के मॉडल का लगभग एक दर्जन प्रतिद्वंद्वियों ने अनुसरण किया है। दुनिया में 70 करोड़ से अधिक लोग स्ट्रीमिंग सेवाओं के ग्राहक हैं। इस वर्ष स्ट्रीमिंग कंटेंट पर 7 लाख 18 हजार करोड़ रुपए लगाए जा चुके हैं। कुल मिलाकर मनोरंजन उद्योग ने पिछले पांच वर्षों में कंपनियों के अधिग्रहण और कार्यक्रमों के निर्माण पर 46 लाख 68 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं।
मनोरंजन के कारोबार की प्रकृति तेजी से आगे बढ़ने की है। 1920 में ध्वनि के उदय से हॉलीवुड ग्लोबल फिल्म बिजनेस का केंद्र बन गया। 20 वीं सदी के अंत तक फिल्म इंडस्ट्री आत्मसंतुष्टि के घेरे में आ चुकी थी। वह पुरानी टेक्नोलॉजी- जैसे कि सामान्य प्रसारण, धीमे इंटरनेट कनेक्शन और जटिल सीडी, डीवीडी, हार्ड ड्राइव पर ध्वनि और दृश्य के स्टोरेज- पर निर्भर रही। कंज्यूमर से घिसे-पिटे कंटेंट का भारी पैसा वसूल किया गया। पहला झटका 1999 में म्यूजिक इंडस्ट्री ने महसूस किया। इंटरनेट सेवाओं ने ईएमआई और वार्नर म्यूजिक जैसी स्थापित कंपनियों पर असर डाला। 2007 में नेटफ्लिक्स ने वीडियो सब्सक्रिप्शन बेचने के लिए ब्रॉडबैंड कनेक्शनों का इस्तेमाल किया। इधर, केबल कंपनियों को धक्का लगा है। स्मार्ट फोन ने इन सेवाओं को लोगों के हाथ में पहुंचाया है।
नेटफ्लिक्स के आने से मनोरंजन कारोबार का परिदृश्य बदल गया है। पुराने दिग्गजों को मूल्य घटाने पड़े और नवीनता की तरफ बढ़ना पड़ा है। कहानी लेखकों के दिन फिर गए हैं। हॉलीवुड स्टूडियो के किराए बढ़े। बीसवीं सदी के मीडिया सम्राट पीछे छूटने लगे हैं। रुपर्ट मर्डोक को मार्च में अपने साम्राज्य का बहुत बड़ा हिस्सा डिज्नी को बेचना पड़ा है। इस सबके बीच कारोबार के नए मॉडल की रुपरेखा स्पष्ट होने लगी है। टेलीविजन और वीडियो स्ट्रीमिंग में किसी भी फर्म की बाजार में हिस्सेदारी 20% से अधिक नहीं है। दावेदारों में नेटफ्लिक्स, डिज्नी, एटीएंडटी-टाइम वार्नर, कॉमकास्ट और छोटी कंपनियां हैं। तीन टेक्नोलॉजी कंपनियां-यूट्यूब, अमेजन, एपल- भी सक्रिय हैं। म्यूजिक इंडस्ट्री में भी होड़ मची है। यहां 34% बाजार हिस्सेदारी के साथ अमेरिका में स्पोटीफाई सबसे बड़ी कंपनी है।
नई हलचल से आर्थिक अवसर पैदा हुए हैं। कंज्यूमर फायदे में है। अब कोई भी स्ट्रीमिंग सेवा एक हजार रुपए में मिल सकती है जबकि केबल टीवी के लिए साढ़े पांच हजार चुकाना पड़ते थे। पिछले वर्ष 496 नए शो बनाए गए। यह संख्या 2010 से दोगुनी है। स्ट्रीमिंग शो के लिए ऑस्कर और एमी अवॉर्ड के नॉमिनेशन को देखने से स्तर में सुधार की झलक मिलती है। अमेरिका में एंटरटेनमेंट, मीडिया, आटर्स और खेलों में 2008 के बाद नौकरियों की संख्या में 8% बढ़ोतरी हुई है। वेतन पांच गुना बढ़े हैं। निवेशकों को अब भारी मुनाफा नहीं होता है लेकिन जिन्होंने सही फर्मों में पैसा लगाया है, उनकी स्थिति अच्छी है। दस वर्ष पहले वायकॉम के शेयरों में एक डॉलर (71 रु.) लगाने पर आज उसका मूल्य 95 सेंट (67 रु.) होता। नेटफ्लिक्स के लिए यह आंकड़ा 37 डॉलर (2600 रुपए) रहता।
कई धमाकेदार हलचलों के ध्वस्त होने का अंदेशा भी रहता है। नेटफ्लिक्स हर वर्ष दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा लगा रही है। उसे लागत और आय में बराबरी की स्थिति हासिल करने के लिए 15% सब्सक्रिप्शन बढ़ाना पड़ेगा। 30 से अधिक प्रतिद्वंद्वी सेवाओं के मैदान में होने पर यह बेहद मुश्किल लगता है। उसे आशा है कि तेजी से बढ़ते अंतरराष्ट्रीय बाजार के कारण वह ऐसा कर सकेगी। नए अधिग्रहण और भारी खर्च के कारण अमेरिकी मीडिया कंपनियों पर 35 लाख करोड़ रु. से अधिक कर्ज हो गया है। इस तरह की उथलपुथल होने पर निराश करने वाले दो उदाहरण याद आते हैं। अमेरिका में 1990 के दशक में टेलीकॉम और एयरलाइन इंडस्ट्री में जबर्दस्त होड़ मची थी। इससे संबंधित कंपनियों पर आर्थिक बोझ पड़ा। धीरे-धीरे कंपनियों की संख्या कम होती गई। आज ये दोनों क्षेत्र कमजोर सेवाओं और ऊंची कीमतों के लिए जाने जाते हैं।
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